Friday, June 26, 2009

जब भी सोचता हूँ यही सवाल उभर आते हैं क्यूँ ?

सांस लेने भर का नाम ही जीना नहीं है क्यूँ ?

एक तेरे गम का नाम ही मरना नहीं है क्यूँ?

कहने को कई गम हैं लेकिन हर गम की घुटन अलग है क्यूँ?

हैं तो सब कांटे, पर हर कांटे की चुभन अलग है क्यूँ?

दर्द तो है कई पर मेरे लिए कोई दामन नहीं है क्यूँ?

आँखें कई हैं लेकिन मेरे लिए कोई नम नहीं है क्यूँ?

रिश्तों की भीड़ मैं कोई अपना नहीं है क्यूँ?

रात तो सभी हैं, हर रात का आसमा अलग है क्यूँ?

नाम एक है हर रिश्ते का मर्म अलग है क्यूँ?