Friday, June 26, 2009

जब भी सोचता हूँ यही सवाल उभर आते हैं क्यूँ ?

सांस लेने भर का नाम ही जीना नहीं है क्यूँ ?

एक तेरे गम का नाम ही मरना नहीं है क्यूँ?

कहने को कई गम हैं लेकिन हर गम की घुटन अलग है क्यूँ?

हैं तो सब कांटे, पर हर कांटे की चुभन अलग है क्यूँ?

दर्द तो है कई पर मेरे लिए कोई दामन नहीं है क्यूँ?

आँखें कई हैं लेकिन मेरे लिए कोई नम नहीं है क्यूँ?

रिश्तों की भीड़ मैं कोई अपना नहीं है क्यूँ?

रात तो सभी हैं, हर रात का आसमा अलग है क्यूँ?

नाम एक है हर रिश्ते का मर्म अलग है क्यूँ?

5 comments:

प्रकाश गोविंद said...

भावुक करती रचना
अच्छी लगी
लिखते रहें मेरी शुभकामनायें


कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया हटा दें ! इसकी वजह से प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक
परेशानी होती है !

तरीका :-
डेशबोर्ड > सेटिंग > कमेंट्स > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > सेलेक्ट नो > सेव सेटिंग्स

आज की आवाज

Unknown said...

pyaari rachna..........
achhi rachna

badhaai !

ज्योति सिंह said...

मेरे लिए कोई दामन नहीं है क्यूँ?आँखें कई हैं लेकिन मेरे लिए कोई नम नहीं है क्यूँ? रिश्तों की भीड़ मैं कोई .
bahut sundar.swagat hai .

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

bahyt khub.narayan narayan

sandhyagupta said...

Likhte rahiye.