आज फ़िर एक चाह उठी है ....
फ़िर से जिऊ यह उमंग जगी है...
साँस लूँ मैं यह फ़िर से जी करता है...
दिल धड़कने को तड़पा करता है...
जीवन के सफर में दौड़ लगाऊ फ़िर मन करता है...
पर क्या करुँ एक डर सा लगता है...
फ़िर से कहीं गिर न जाऊं...
अबके गिरा तो उठ न पाऊंगा...
ठोकर लगी तो संभल न पाउँगा...
दिल जो टूटा तो जी न पाऊंगा...
यही सोच कर थम जाता हू मैं...
साँस लेते लेते ठहर जाता हू मैं...
उठते हुए कदम रोक लेता हू मैं...
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