जब भी सोचता हूँ यही सवाल उभर आते हैं क्यों?
साँस लेने भर का नाम ही जीना नहीं है क्यों?
एक तेरे गम का नाम ही मरना नही है क्यों?
कहने को तो सब गम हैं लेकीन हर गम की घुटन अलग है क्यों?
हैं तो सब कांटे पर सब की चुभन अलग है क्यों?
जब भी सोचता हूँ यही सवाल उभर आते हैं क्यों?
अश्क कई हैं पर मेरे लीयेकोई दामन नही है क्यों?
आँखें कई हैं पर मेरे लीये कोई नम नही है क्यों?
रिश्ते तो बहुत है पर मेरे लीये कोई अपना नही है क्यों?
रात तो सब एक हैं पर हर रात का आसमांअलग है क्यों?
जब भी सोचता हूँ यही सवाल उभर आते हैं क्यों?
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